श्री शिव तांडव स्तोत्र: भगवान शिव की महिमा में रचित रावण कृत शक्तिशाली स्तुति








 

श्री शिव तांडव स्तोत्र: भगवान शिव की महिमा में रचित रावण कृत शक्तिशाली स्तुति

श्री शिव तांडव स्तोत्र भगवान शिव की महिमा और शक्ति को दर्शाने वाली एक अनुपम भक्ति रचना है, जिसे लंकापति रावण ने रचा था। यह स्तोत्र भोलेनाथ के तांडव नृत्य और उनके दिव्य रूप का वर्णन करता है। इसके पाठ से भक्तों को आध्यात्मिक शक्ति, मानसिक शांति, और शिव कृपा की प्राप्ति होती है। सावन मास, शिवरात्रि, और अन्य पवित्र अवसरों पर इसका पाठ विशेष रूप से फलदायी माना जाता है।

शिव तांडव स्तोत्र का महत्व

शिव तांडव स्तोत्र केवल एक भक्ति रचना नहीं, बल्कि एक शक्तिशाली मंत्र है जो भक्तों के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और आत्मविश्वास लाता है। यह रावण द्वारा शिव की भक्ति में रचित होने के कारण अद्वितीय है। इसके नियमित पाठ से नकारात्मकता दूर होती है, और भक्त भगवान शिव के निकट अनुभव करते हैं।

श्री शिव तांडव स्तोत्र (पूर्ण पाठ)

जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम्।

डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम्॥१॥

जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि।

धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम॥२॥

धराधरेन्द्रनन्दिनीविलासबन्धुबन्धुर स्फुरद्दिगन्तसन्तति प्रमोदमानमानसे।

कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि॥३॥

जटाभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे।

मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि॥४॥

सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर प्रसूनधूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रिपीठभूः।

भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटकः श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः॥५॥

ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुरिङ्गभा निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम्।

सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं महाकपालिसम्पदे शिरोजटालमस्तु नः॥६॥

करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वलद् धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके।

धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रकः प्रभूमहालिनं फलं स्मरान्तकं पुरान्तकम्॥७॥

नवीनमेघमण्डलीनिरुद्धदुर्धरस्फुरत् कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबद्धकन्धरः।

निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः॥८॥

प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमच्छटा विडम्बि कण्ठकन्धरारुचि प्रबद्धकन्धरम्।

स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदान्धकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे॥९॥

अखर्वसर्वमङ्गलाकलाकदम्बमञ्जरी रसप्रवाहमाधुरीविजृम्भणामधुव्रतम्।

स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे॥१०॥

जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वसद् विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट्।

धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल ध्वनिक्रमप्रवर्तितप्रचण्डताण्डवः शिवः॥११॥

स्पृषद्विचित्रतन्तुभिः प्रभासमस्तसङ्गतं विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिन्तनम्।

स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदान्धकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे॥१२॥

कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन् विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमञ्जलिं वहन्।

विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मन्त्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम्॥१३॥

इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेति सन्ततम्।

हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिन्तनम्॥१४॥

पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं यः शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे।

तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां लक्ष्मीं सदैव सुमुखिम प्रदादातिशम्भुः१५॥

॥ फलश्रुति ॥

इति श्रीरावणकृतं शिवताण्डवस्तोत्रं सम्पूर्णम्।

शिव तांडव स्तोत्र पाठ की विधि

शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने के लिए सुबह या प्रदोष काल (संध्या समय) में स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। भगवान शिव की मूर्ति या चित्र के सामने दीप-धूप जलाएँ। पूर्ण श्रद्धा और एकाग्रता के साथ इस स्तोत्र का पाठ करें। सावन मास और शिवरात्रि में इसका पाठ विशेष फलदायी है।

शिव तांडव स्तोत्र के लाभ

शिव तांडव स्तोत्र का नियमित पाठ करने से निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं:

  • आध्यात्मिक शक्ति और मानसिक शांति की प्राप्ति।
  • नकारात्मक ऊर्जा और भय का नाश।
  • भोलेनाथ की कृपा और जीवन में समृद्धि।
  • मनोकामनाओं की पूर्ति और मोक्ष का मार्ग।

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