गीता नीति
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भगवद्गीता श्लोक: अध्याय 1 – अर्जुन-विषाद-योग
भगवद्गीता का पहला अध्याय, अर्जुन-विषाद-योग, युद्ध के मैदान में अर्जुन के नैतिक और भावनात्मक संकट को दर्शाता है। कुरुक्षेत्र में युद्ध शुरू होने से पहले, अर्जुन अपने कर्तव्य और युद्ध के परिणामों को लेकर दुविधा में पड़ जाता है। यह अध्याय गीता के दार्शनिक और आध्यात्मिक उपदेशों की नींव रखता है। यहाँ हम पहले अध्याय के कुछ महत्वपूर्ण श्लोकों को उनके हिंदी अर्थ और व्याख्या के साथ प्रस्तुत करते हैं।
चयनित श्लोक: अध्याय 1
श्लोक 1
धृतराष्ट्र उवाच
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः।
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत संजय।।
अर्थ
धृतराष्ट्र ने कहा: हे संजय, धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में युद्ध की इच्छा से एकत्रित मेरे और पाण्डवों के पुत्रों ने क्या किया?
यह गीता का पहला श्लोक है, जिसमें धृतराष्ट्र संजय से कुरुक्षेत्र में होने वाली घटनाओं के बारे में पूछते हैं। यह युद्ध के संदर्भ और अर्जुन के संकट की शुरुआत को दर्शाता है।
— भगवद्गीता, अध्याय 1, श्लोक 1
श्लोक 20
अथ व्यवस्थितान् दृष्ट्वा धार्तराष्ट्रान् कपिध्वजः।
प्रवृत्ते शस्त्रसम्पाते धनुरुद्यम्य पाण्डवः।।
अर्थ
उस समय, धृतराष्ट्र के पुत्रों को युद्ध के लिए तैयार देखकर, कपिध्वज (हुंकार करने वाला) अर्जुन ने अपना धनुष उठाया।
यह श्लोक अर्जुन की युद्ध की तैयारी को दर्शाता है, लेकिन यह उनके आंतरिक संकट की शुरुआत भी है, जो अगले श्लोकों में प्रकट होता है।
— भगवद्गीता, अध्याय 1, श्लोक 20
श्लोक 28-29
अर्जुन उवाच
दृष्ट्वेमं स्वजनं कृष्ण युयुत्सुं समुपस्थितम्।
सीदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिशुष्यति।।
अर्थ
अर्जुन ने कहा: हे कृष्ण, युद्ध के लिए तैयार अपने स्वजनों को देखकर मेरे अंग शिथिल हो रहे हैं और मेरा मुँह सूख रहा है।
यह श्लोक अर्जुन के विषाद (दुख और संकट) को व्यक्त करता है, जब वह अपने रिश्तेदारों और गुरुओं को युद्ध के मैदान में देखता है। यह गीता के आध्यात्मिक उपदेशों की शुरुआत का आधार बनता है।
— भगवद्गीता, अध्याय 1, श्लोक 28-29
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